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‘(1)हँसते हुए मेरा अकेलापन’ शीर्षक रचना में मलयज ने किस नवीन विधा की चर्चा की है?

उत्तर- मलयज की कविता और आलोचना से कम महत्वपूर्ण नहीं हैं उनकी डायरियाँ जो एक प्रतिभाशाली, संवेदनशील, कवि-आलोचक के आत्मनिर्माण का प्रामाणिक अंतरंग साक्ष्य है। एक व्यक्ति को कितना ईमानदार और विचारशील होना चाहिए। व्यक्ति के क्या दायित्व हैं और अपने दायित्वों के प्रति कैसा लगाव कैसी सनद्धता होनी चाहिए इसकी झाँकी मलयज की डायरी के एक अंश से मिलती है। वस्तुतः मलयज के इस डायरी संस्मरण में उनके हँसते हुए अकेलापन का वर्णन सटीक रूप से किया गया है। इसमें डायरीके  रूप में आत्मकथा को लेखक ने प्रस्तुत किया है।

 

(2) दूसरे पद में तुलसी ने दीनता और दरिद्रता का प्रयोग क्यों किया है

उत्तर: दीनता और दरिद्रता लगभग समानार्थक शब्द हैं। दीनता दोन होने का भाव है। दीनता में नम्रता होती है। दीनता गरीबी को कहते हैं। दीनता विपन्नता को कहते हैं। दीनता मनुष्य की दुरवस्था है। दीनता में मनुष्य की दुर्दशा होती है। दरिद्रता भी गरीबी, कंगाली निर्धनता और अभावग्रस्तता का दूसरा नाम है। दीनता दूर हो सकती है, दरिद्रता के कीचड़ में फँसा आदमी फँसता ही जाता है। अकाल में उस समय लोग फँस गए थे। इसीलिए दीनता और दारिद्रय दोनों शब्दों का प्रयोग तुलसीदास ने किया है 

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