Q.1. हड़प्पा सभ्यता के पतन के प्रमुख कारणों का वर्णन करें
Ans. हड़प्पा सभ्यता कैसे समाप्त हुई, इसको लेकर विद्वानों में मतभेद है। फिर भी इसके पतन के निम्नलिखित कारण दिये जाते है- • सिन्धु क्षेत्र में आगे चलकर वर्षा कम हो गयी। फलस्वरूप कृषि और पशुपालन में
कठिनाई होने लगी।
कुछ विद्वानों के अनुसार इसके पास का रेगिस्तान बढ़ता गया। फलस्वरूप मिट्टी में लवणता बढ़ गयी और उर्वरता समाप्त हो गयी। इसके कारण सिधु सभ्यता का पतन हो गया। • कुछ लोगों के अनुसार यहाँ भूकंप आने से बस्तियाँ समाप्त हो गयी।
• कुछ दूसरे लोगों का कहना था कि यहाँ भीषण बाढ़ आ गयी और पानी जमा हो
गया। इसके कारण लोग दूसरे स्थान पर चले गये।
• एक विचार यह भी माना जाता है कि सिंधु नदी की धारा बदल गयी और सभ्यता
का क्षेत्र नदी से दूर हो गया।
Q.2. पुरातत्व से आप क्या समझते हैं? का सिद्धान्त कहा जाता है। उत्खनन से आप क्या समझते हैं?
Ans. पुरातत्व वह विज्ञान है जिसके माध्यम से पृथ्वी के गर्भ में छिपी हुई सामग्रियों की खुदाई कर अतीत के लोगों के भौतिक जीवन का ज्ञान प्राप्त करना। किसी भी सभ्यता के इतिहास को जानने में पुरातत्व एक महत्वपूर्ण एवं विश्वसनीय स्रोत है। हड़प्पा सभ्यता का ज्ञान पुरातत्व पर ही आधारित है। पुरातत्व में मिली उपकरणों, औजारों, धातु, पदार्थों, बर्तनों आदि के आधार पर लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्तर के बारे में पुरातत्वविद् निष्कर्ष निकालते हैं। उत्खनन से विभिन्न सभ्यताओं की प्राचीनता का पता चलता है। पुरातात्विक वस्तुएँ जितनी गहराई पर प्राप्त होती है वे उतनी ही प्राचीन होती है। इसे काल निर्णय में स्तरीकरण
Q.3. हड़प्पा वासियों द्वारा व्यवहृत सिंचाई के साधनों का वर्णन करें।
Ans. अधिकांश हड़प्पा स्थल अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में स्थित है जहाँ संभवतः कृषि के लिए सिंचाई की आवश्यकता पड़ती होगी। अफगानिस्तान में सौतुराई नामक हड़प्पा स्थल से नहरों के कुछ अवशेष मिले हैं, परन्तु पंजाब और सिंध में नहीं। ऐसा संभव है कि प्राचीन नहरे बहुत पहले ही गाद से भर गई थी। ऐसा भी हो सकता है कि कुओं से प्राप्त पानी का प्रयोग सिचाई के लिए किया जाता हो। इसके अतिरिक्त धौलावीरा (गुजरात) में मिले जलाशयों का प्रयोग संभवतः कृषि के लिए जल संचयन हेतु किया जाता था
Q.4. इतिहास लेखन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
Ans. अभिलेख उन्हें करते है जो पत्थर धातु या मिट्टी के बर्तन जैसी कठोर महपर खुदे हुए होते हैं। अभिलेखो में उन लोगों की उपलब्धियों कियाकलाप या विचार लिखे जाते है, जो उनी बनवाते है। अभिलेख की विशेषताएँ निम्नलिखित है- • राजाओं के क्रियाकलाप तथा महिलाओं और पुरुषों द्वारा धार्मिक संस्थाओं को दिये
ये दान का ब्यौरा होता है।
• अभिलेख एक प्रकार से स्थायी प्रमाण होते हैं। कई अभिलेखों में इनके निर्माण की
तिथि भी खुदी होती है। • जिन अभिलेखों पर तिथि नहीं मिलती है, उनका काल निर्धारण आमतौर पर पुरालिपि अथवा लेखन शैली के आधार पर काफी सुस्पष्टता से किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, लगभग 250 ई०पू० में अक्षर ‘अ’ प्र जैसा लिखा जाता था और 500 ई०:में यह प जैसा लिखा जाता था। • प्राचीनतम अभिलेख प्राकृत भाषाओं में लिखे जाते थे। प्राकृत उन भाषाओं को कहा जाता था जो जनसामान्य की भाषाएँ होती थी।
Q.5. मौर्यकालीन इतिहास के प्रमुख स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
Ans. मौर्य वंश के इतिहास को जानकारी साहित्यिक और पुरातात्विक दोनों खोत से
होती है। साहित्यिक स्रोतों में यूनानी यात्री मेगस्थनीज द्वारा लिखा गया वृतांत और कौटिल्य का अर्थशास्त्र महत्वपूर्ण है। इसके साथ परवर्ती जैन, बौद्ध, पौराणिक ग्रंथ तथा संस्कृत वाडगमय से भी सहायता मिलती है। पुरातात्विक सोता में अशोक के अभिलेख महत्वपूर्ण है। ये अभिलेख अशोक के विचारों की अच्छी जानकारी देते हैं। इसमें उसके धर्म के प्रचार का भी उल्लेख है।
Q.6. अशोक के धम्म के बारे में आप क्या जानते हैं?
Ans.अशोक का धर्म संकीर्णता से बहुत दूर और साम्प्रदायिकता से बहुत ऊपर उठा हुआ था। लेकिन अशोक के धार्मिक विचारों तथा सिद्धान्तों में क्रमागत विकास हुआ था। कलिंग युद्ध के पहले अशोक ब्राह्मण धर्म को मानने वाला था। वह माँस भी खूब खाता था। राजमहल में असंख्य पशु-पक्षियों का प्रतिदिन वध होता था। लेकिन कलिंग युद्ध के बाद उसके विचारों में महान परिवर्तन हो गया। वह हिसा को तिलांजलि देकर अहिंसा का सदैव के लिए अनन्य भक्त बन गया। इसके लिए उसने ब्राह्मण धर्म को छोड़ दिया और बौद्ध धर्म को अपना लिया। अशोक ने अपने धर्म से साम्प्रदायिकता का अन्त कर अपने धर्म में विश्व के सभी धर्मो के महत्त्वपूर्ण तत्त्वों को ग्रहण किया और इसको विश्व धर्म में स्थान देने की कोशिश की। धर्म की उन्नति : अशोक ने अपने धम्म की उन्नति के लिए इसका व्यापक प्रचार करवाया। इस उद्देश्य से उसने निम्नलिखित कार्य किए-
(1) उसने धर्म के सिद्धान्तो को शिलालेखों पर खुदवाया।
(2) उसने धर्म महामात्रों की नियुक्ति की। ये कर्मचारी राज्य में घूम-घूमकर लोगों में धर्म के सिद्धान्तों का प्रचार करते थे। (3) उसने धर्म के नियमों को स्वयं अपनाया ताकि लोग उससे प्रभावित होकर इन नियमों को अपनाएँ। (4) उसने अपने सभी कर्मचारियों को लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करने का आदेश दिया।
Q.7. मौर्य प्रशासन की जानकारी दें।
Ans. मेगास्थनीज के वृतान्त से पता चलता है कि पाटलिपुत्र जैसे बड़े नगरों के लिए विशेष नागरिक प्रबंध की व्यवस्था की गई थी। इस नगर के लिए बीस सदस्यों की एक समिति थी, जो बोर्डों में विभक्त की गई थी। प्रत्येक बोर्ड में पाँच सदस्य होते थे। ये बोर्ड
निम्नलिखित ढंग से अपना कार्य करते थे- • पहले का कार्य कला कौशल की देखभाल करना, कारीगरी के सिर्फ वेतन नियत करना और दुःख में सहायता करना आदि था। • दूसरे का कार्य विदेशियों की देखभाल करना, उनके लिए सुख-सामग्री उपलब्ध कराना तथा उनकी निगरानी रखना आदि था। • तीसरे बोर्ड का कार्य जन्म-मरण का हिसाब रखना था ताकि कर लगाने तथा अन्य प्रबंध करने में सुविधा रहे। • चौथे का कार्य व्यापार का प्रबंध करना। • पाँचवे का कार्य शिल्पालयों में बनी वस्तुओं की देखभाल करना • छठे बोर्ड का कार्य वस्तुओं की बिक्री पर लगे हुए विक्रय कर को एकत्र करना था।
Q.8. बौद्धधर्म की मुख्य शिक्षाओं पर प्रकाश डालिए।
Ans. बौद्ध धर्म की मुख्य शिक्षा निम्न है- बौद्ध धर्म ईश्वर के अस्तित्व के विषय मे मौन है। बौद्ध धर्म में पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन, कर्म के समक्ष व्यर्थ है। बौद्ध धर्म . अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है। यह आदि में इनका विश्वास बल देता है। • बौद्ध धर्म मोद प्राप्ति के लिए अच्छे कर्म और पवित्र जीवन पर बल देता है। बौद्ध धर्म संघ को धर्म का प्रचार माध्यम बनाता है, मठों में अध्ययन-अध्यापन का कार्य होता है। • बौद्ध धर्म का विस्तार देश-विदेश दोनों स्थानों पर हुआ। एशिया के कई देश इसकी छाया में आ गये थे।
Q.9. महायान सम्प्रदाय के विषय में आप क्या जानते हैं?
Ans. महायान सम्प्रदाय के अनुयायी बौद्ध धर्म को सरल बनाना चाहते थे। ये लोग भगवान बुद्ध की मूर्ति पूजा करते थे। इस सम्प्रदाय के लोगो ने धीरे-धीरे अहिसा के सिद्धान्तों, नैतिकता आदि पर जोर दिया। यह चीन और मध्य एशिया में अधिक प्रचलित हुआ।
Q.10. वज्रयान सम्पदाय के विषय में आप क्या जानते हैं?
Ans. वज्रयान सम्पद्राय का उदय 8वीं सदी में बंगाल एवं बिहार में हुआ। इसके अनुयायी कई प्रकार की गोपनीय क्रियाएँ करते थे जिनमें स्त्रियाँ एवं मंदिरा आवश्यक होती थी। इस सम्प्रदाय में देवियों का महत्व था जिन्हें बुद्ध की रानियों के रूप में प्रस्तुत किया गया। देवियों को तारा कहा गया। यह धर्म पंजाब, कश्मीर, सिघ एवं अफगानिस्तान तक फैला हुआ था। इसकी बुराइयों ही कालान्तर में बौद्ध धर्म के पतन का कारण बनी।
Q.11. गौतम बुद्ध किस तरह एक ज्ञानी व्यक्ति बने ? Ans. लगभग 30 वर्ष की अवस्था में गौतम ने अपने पिता के घर अथवा महल को त्याग दिया। वे जीवन के सत्य को जानने के लिए निकल पड़े।
सिद्धार्थ ने साधना के कई मार्गों का अन्वेषण किया। इनमें एक था शरीर को अधिक से अधिक कष्ट देना जिसके चलते वे मरते-मरते बचे। इन अतिवादी तरीको को त्यागकर उन्होंने कई दिन तक ध्यान करते हुए अंततः ज्ञान प्राप्त किया। इसके बाद ही उन्हें बुद्ध अथवा ज्ञानी व्यक्ति के नाम से जाना गया है। शेष जीवन उन्होंने धर्म या सम्यक जीवनयापन की शिक्षा दी
Q.12. गुप्तकाल के विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर प्रकाश डालें।
Ans. गुप्तकाल में विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व उन्नति हुई थी। गणित, रसायन विज्ञान, पदार्थ विज्ञान, धातु विज्ञान और ज्योतिष आदि की इस काल में काफी प्रगति हुई थी। दशमलव भिन्न की खोज और रेखागणित का अभ्यास इसी काल की देन है। आर्यभट्ट इस युग के ख्याति प्राप्त गणितज्ञ और ज्योतिषी थे। उनका ग्रहण के संबंध मे विचार वास्तव में वैज्ञानिक है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। चरक और सुश्रुत इस युग के प्रसिद्ध वैद्य थे। वराहमिहिर और ब्रह्मगुप्त इस काल के ज्योतिषज्ञ थे। ब्रह्म सिद्धान्त ब्रह्मगुप्त की ही रचना थी
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