(1)चम्पारण क्षेत्र में बाढ़ की प्रचंडता बढ़ने के क्या कारण हैं ?
चम्पारण क्षेत्र में बाढ़ का प्रमुख कारण जंगलों का कटना है। वन के वृक्ष जल राशि को अपनी जड़ों में धाये रहते हैं। नदियों को उन्मुक्त नवयौवना बनने से बचाते हैं। उत्ताल वृक्ष नदी की धाराओं की गति को भी संतुलित करने का काम करते हैं। यदि जलराशि नदी की सीमाओं से ज्यादा हो जाती है, तब बाढ़ आती ही हैं, लेकिन जब बीच में उनकी शक्तियों को ललकारने वाले ये गगनचुम्बी वन न हो तब नदियाँ प्रचंड कालिका का रूप धारण कर लेती हैं। वृक्ष उस प्रचंडिका को रोकने वाले हैं। आज चंपारण में वृक्ष को काट कर कृषियुक्त समतल भूमि बना दी गई है। अब उन्मुक्त नवयौवना को रोकने वाला कोई न रहा, इसलिए ये अपनी ताकत का एहसास कराती हैं। लगता है मानो मानव के कर्मों पर अट्टाहास कराने के लिए, उसे दंड देने के लिए नदी में भयानक बाढ़ आते हैं।
प्रश्न 2. उदय प्रकाश की कहानी तिरिछ का सार सारांश लिखिए। अथवा लेखक उदय प्रकाश के पिता के चरित्र का वर्णन करें
।उत्तरः उदय प्रकाशजी ने पिछले दो दशकों में समसामयिक हिन्दी लेखन में एक अग्रणी एवं महत्वपूर्ण लेखक की छवि और पहचान अर्जित की है। आजीविका और वृत्ति की दृष्टि से लगातार अनिश्चय, स्वास्थ्य के लिहाज से लगातार बदहाली झेलते हुए इस संघर्षशील कवि-कथाकार ने अदभुत जीवट से भरी सर्जनशीलता दिखाई है। उनके अनुभव में खासा वैविध्य है। गाँव और शहर, मध्यवर्ग और निम्न वर्ग आदि के परंपरागत विभाजन उनके अनुसार अप्रासंगिक हो चुके हैं।
प्रस्तुत कहानी में ‘तिरिछ’ एक प्रतीक है। यह समाज में व्याप्त विकृति का प्रतिनिधित्व करता है। शहर के तथाकथित आधुनिक समय के द्वंद्व से इसकी उत्पत्ति होती है। सुदूर गाँव में रहने वाला एक वयोवृद्ध व्यक्ति जब शहर में जाता है तो उसके साथ जो घटना घटती है, वह अत्यंत भयावह और दारुण है। आधुनिक समय में गँवई वास्तविकता को पीछे छोड़कर, बहुत आगे बढ़ चुके शहर के तथाकथित आधुनिक वातावरण में जिस प्रकार से निपटा जाता है। उसकी विषक्तता ‘तिरिछ’ (विषैले जन्तु) से किसी प्रकार कम नहीं है। विद्वान लेखक का इसी ओर इशारा है।
लेखक के पिताजी सीधे-सादे ग्रामीण व्यक्ति थे। गाँव का जीवन उन्हें बेहद पसंद था। शहर से उनका औपचारिक संबंध था। आवश्यक कार्यवश जाते थे तथा काम संपादित होने के बाद शीघ्रताशीघ्र अपने गाँव वापस लौट जाते थे। शहर की जीवन शैली उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं थी। उनकी वेशभूषा तथा चाल-ढाल भी ग्रामीण जीवन से प्रभावित थी। यही कारण था कि अपने गाँव की गली, पहाड़ तथा जंगल से वे पूरी तरह परिचित थे। वहाँ का चप्पा-चप्पा उन्हें ज्ञात था जबकि शहर की सड़कों को वे भूल जाते थे। शहर में किसी स्थान पर जाने में भटक जाते थे। यही कारण था कि जब कचहरी के काम से शहर जाना पड़ा तो संभवतः वे रास्ता भटक गये तथा शहर के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्तियों द्वारा उन्हें शराबी, पागल, अपराधी आदि समझकर भीषण यंत्रणा दी गई। उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया।
प्रस्तुत कहानी ‘तिरिछ’ एक उत्तर आधुनिक त्रासदी है। आज के युग में समय बहुत दूर तक वैश्विक और सार्वभौम हो चुका है। विकास की दृष्टि से दुनिया के देशों का चाहे अब भी विभाजन किया जा सकता हो, पर कहीं ऐसे विभाजन अप्रासंगिक भी हो चुके है। ऐसे में भारत जैस देश में यथार्थ और समय के बीच बहुसंख्यक समाज के लिए एक ऐसी अलंध्य खाई उभरी है जिसके चलते जीवन में बेगानगी और अंजनवियत आई है।
प्रश्न 3. ‘प्रगीत और समाज’ शीर्षक निबंध का सार संक्षेप में प्रस्तुत करें।
उत्तर: डॉ. नामवर सिंह हिन्दी आलोचना की एक शिखर प्रतिभा है। नामवर सिंह की आलोचना में गहरी ऐतिहासिक अंतर्दृष्टि, परंपरा के रचनात्मक संतुओं की पहचान एवं सार- सहेज, सूक्ष्म समयबोध और लोकनिष्ठा के साथ-साथ साहित्य-कृतियों में रूप एवं अंतर्वस्तु की मार्मिक समझ दिखाई पड़ती है। साहित्य के अतिरिक्त इतिहास, दर्शन, राजनीति, समाजशास्त्र आदि अनेक विषयों का अंतरानुशासनात्मक अध्ययन नामवर सिंह ने किया है। हिन्दी को एक लालित्यपूर्ण सर्जनात्मक भाषा और मुहावरा देने का श्रेय नामवर सिंह को प्राप्त है।
प्रस्तुत निबंध उनके आलोचनात्मक निबंधों की पुस्तक वाद विवाद संवाद’ से लिया गया है। इस निबंध में हजार वर्षों में फैली हिन्दी काव्य परंपरा पर ऐतिहासिक अंतर्दृष्टि के साथ विचार करते हुए ‘प्रगीत’ नामक काव्य रूप की निरंतरता को हिन्दी समाज की जातीय प्रकृति और भाव प्रवाह की उपज के रूप में परिभाषित किया गया है।
अपनी वैयक्तिकता और आत्मपरकता के कारण “लिरिक” अथवा “प्रगीत” काव्य की कोटि में आती है। प्रगीतधर्मी कविताएँ न तो सामाजिक पदार्थ की अभिव्यक्ति के लिए पर्याप्त समझी जाती है, न उनसे इसकी अपेक्षा की जाती है। आधुनिक हिन्दी कविता में गीति और मुक्तक के मिश्रण से नूतन भाव भूमि पर जो गीत लिखे जाते हैं उन्हें ही ‘प्रगीत’ की संज्ञा दी जाती है। सामान्य समझ के अनुसार प्रगीतधर्मी नितांत वैयक्तिक और आत्मपरक अनुभूतियों
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के काव्य सिद्धांत के आदर्श प्रबंधकाव्य ही थे क्योंकि “प्रबंधकाव्य में मानव जीवन का एक पूर्ण दृश्य होता है।” प्रबंधकाव्य जीवन के संपूर्ण पक्ष को प्रकाशित करता है। आचार्य शुक्ल को भी उन्हें इसलिए परिसीमित लगा क्योंकि वह गीतिकाव्य है।
आधुनिक प्रगीत काल का उन्मेश बीसवीं सदी में रोमांटिक उत्थान के साथ हुआ तथा इसका संबंध भारत के राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष से है। इसके भक्तिकाव्य से भिन्न इस रोमांटिक प्रगीतात्मकता के मूल में एक नया व्यक्तिवाद है। जहाँ समाज के बहिष्कार के द्वारा ही व्यक्ति अपनी सामाजिकता प्रमाणित करता है। इस दौरान सीधे-सीधे राष्ट्रीयता संबंधी विचारों तथा भावों को काव्यरूप देनेवाले मैथिलीशरण गुप्त जैसे राष्ट्रकवि हुए और अधिकांशतः उन्होंने प्रबंधात्मक काव्य ही लिखे जिन्हें उस समय ज्यादा सामाजिक माना गया।पिछले कुछ वर्षों से हिन्दी कविता के वातावरण में कुछ परिवर्तन के लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं। एक नए स्तर पर कवि व्यक्ति अपने और के समाज के बीच के रिश्ते को साधने की कोशिश कर रहा है और इस प्रक्रिया में जो व्यक्तित्व बनता दिखाई दे रहा है वह निश्चय ही एक नये ढंग की प्रगीतात्मकता के उभार का संकेत है। आधुनिक कविताओं से यह बात धीरे- धीरे पुष्ट होती जा रही है कि मितकमन में अतिकथन से अधिक शक्ति है और ठंढे स्वर की तासीर भी कभी-कभी काफी गरम होती है
प्रश्न 4. आंदोलन के नेतृत्व के संबंध में जयप्रकाश नारायण के क्या विचार थे? अथवा जयप्रकाश नारायण किस प्रकार का नेतृत्व देना चाहते थे?
(2018S+C) उत्तर: जे.पी. को अपने दो मित्र की छाप दिनकर जी और बेनीपुरी जी की स्मृतियों के
प्रभाव से अपनी जिम्मेदारी का पूरा अहसास था। छात्रों का आग्रह हुआ कि आंदोलन का वे नेतृत्व करें पर क्रांति की सफलता के लिए उन्होंने सशर्त नेतृत्व करना स्वीकार किया। उनकी शर्तें थी कि सबकी बात सुनूँगा। छात्रों की बात, जितनी भी ज्यादा होगी, जितना भी समय मेरे पास होगा, उनसे बहस करूँगा, समझँगा और अधिक से अधिक उनकी बात में स्वीकार करूँगा। आपकी बात स्वीकार करूँगा, जन-संघर्ष समितियों की, लेकिन फैसला मेरा होगा। इस
फैसले को इनको मानना होगा और आपको मानना होगा। तब तो इस नेतृत्व का कोई मतलब है, तब यह क्रांति सफल हो सकती है।’
प्रश्न 5. कवि भूषण का काव्यगत परिचय दें।
उत्तर: भूषण हिन्दी कविता में रीतिकाल के एक प्रसिद्ध कवि है जिनका हिन्दी जनता में बहुत सम्मान है। वे जातीय स्वाभिमान, आत्मगौरव, शौर्य एवं पराक्रम के कवि है। वीर रस के इस महान कवि ने फड़कती हुई मुक्तक शैली में छत्रपति शिवाजी और बुंदेला वीर राजा छत्रसाल की वास्तविकता पर आधारित विरुदावलियाँ गाई हैं। ओज पराक्रम और उत्साह से भरे हुए भूषण के प्रवाहमय छंद हिन्दी जनता के बीच शताब्दियों से चाव के साथ गाये जाते रहे हैं। कवि
रचनायें : 1. शिवराज भूषण, 2. भूषण उल्लास, 3. दूषण उल्लास, 4. भूषण हजारा,
5. शिवा बावनी, 6. छत्रसाल दशक।
उक्त ग्रंथों में भूषण उल्लास, दूषण उल्लास और भूषण हजारा ग्रंथ उपलब्ध नहीं है।
प्राप्त ग्रंथों के अतिरिक्त कुछ अन्य छंद भी उपलब्ध है।
प्रश्न 6. ‘तुमुल कोलाहल कलह’ में कविता का भाव सारांश निरूपित करें।
उत्तर: प्रस्तुत गीत श्री जयशंकर प्रसाद के ‘कामायनी’ विशद् मंच से उद्धृत किया गया है। “कामायनी” हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है। जीवन में शांति और आनंद की प्राप्ति के लिए मस्तिष्क एवं हृदय-पक्ष का पूर्ण समन्वय अनिवार्य है। जब तक मनु श्रद्धा के साथ रहे तब तक वे कलह से बिल्कुल दूर रहे। जब इड़ा के साथ उनका संपर्क हुआ तब संघर्ष का सामना करना पड़ा। “कलह” का अर्थ यहाँ बाहरी कलह और आंतरिक अशांति दोनों लेना चाहिए। यदि श्रद्धा को स्त्री माने तो वह हृदये को क्षोभ से दूर रखती है। यही भाव इस गीत में अभिव्यक्त है।
सारांश श्रद्धा जो मनुष्य की रागात्मक वृत्ति का प्रतीक है. वह कहती है- जीवन के कोलाहलपूर्ण भीषण संघर्ष में मैं आत्मा की मनोहर वाणी हूँ। बुद्धि भौतिक संघर्ष कराती है।