(1) मछलियों को लेकर बच्चों की क्या अभिलाषा थी ?
उत्तर- मछलियों को लेकर बच्चों के मन में संवेदना के भाव जग गये। मछलियाँ मर न जाए इसके लिए वे चिंतित थे। उनकी सोच थी कि एक मछली को पिताजी से माँग कर कुएँ डालेंगे। उसे बड़ी होने पर बाल्टी से
निकालेंगे और फिर कुएँ में डाल देंगे।
(2) सीता के प्रति उसके बेटे-बहुओं का व्यवहार कैसा है ?
उत्तर- सीता के प्रति उसके बेटे-बहुओं का व्यवहार नितान्त कटु है, जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं। वे लोग उसे अपनी माँ न मानकर भार स्वरूप समझते हैं, जो उनकी संकीर्णता एवं संवेदनहीनता का परिचायक है।
(3) लेखक ने कहानी का शीर्षक ‘नगर’ क्यों रखा ? स्पष्ट करें ।
उत्तर- नगर कहानी में नगरीय व्यवस्था का चित्रण किया गया है। एक रोगी जो इलाज के लिए गाँव से नगर आता है किन्तु अस्पताल प्रशासन उसका टालमटोल कर देता है। उसकी भर्ती नहीं हो पाती है। नगरीय व्यवस्था से क्षुब्ध होकर ही इस कहानी का शीर्षक ‘नगर’ रखा गया है।
(4) कविता के आधार पर भक्त और भगवान के बीच के संबंध पर
प्रकाश डालिए।
उत्तर- भक्त और भगवान के बीच अन्योन्याश्रय संबंध है। एक के बिना दूसरे की न तो कोई सत्ता है और न ही कोई महत्ता । भगवान की अनुकम्पा चाहने वाले भक्त न रहें तो उनकी कृपा और कोप भी व्यर्थ ही सिद्ध होगी। अगर व्यष्टि ही न हो तो समष्टि की परिकल्पना का भला क्या औचित्य रह जाएगा।
(5) नदी और कविता में लेखक क्या समानता पाता है ?
उत्तर- नदी और कविता दोनों का स्वरूप एक समान है। जिस प्रकार नदी का निर्माण जलकण से हुआ है ठीक उसी प्रकार कविता का निर्माण भी शब्द कण से हुआ है। नदी युगों से बहती आ रही है। कविता भी आदिकाल से ही प्रवाहमय है। नदी और कविता की धारा में हम अनायास बह जाते हैं। निरन्तरता नदी की जीवंतता का प्रतीक है। नदी और कविता दोनों नश्वरता पर विजय पाकर अनंत से हमारा अभिषेक करती है।
(6) सीता अपने ही घर में घुटन क्यों महसूस करती है ?.
उत्तर- सीता के पति के मरते ही घर की स्थिति दयनीय हो गई। बेटों में आपसी भेद उत्पन्न हो गये। वे केवल अपनी पत्नी और संतान में ही सिमट गये हैं। बहुओं को कड़वी बातें उसे चुभती रहती हैं। अपनी ही संतान से वह विक्षुब्ध हो गई है। अपने मन की व्यथा किसी से वह कह नहीं सकती है। यही कारण है कि अपने ही घर में वह मुटन महसूस करती है।
(7) मनुष्य जीवन से पत्थर की क्या समानता और विषमता है ? उत्तर- पत्थर का निर्माण प्राकृतिक कारणों से हुआ है। पत्थर में संवेदना या चेतना का अभाव है। मनुष्य चेतन और संवेदनशील है। मनुष्य में सजीवता, चिंतन शक्ति और अनुभव करने की क्षमता है। पत्थर निर्जीव असंवेदनशील जड़ पदार्थ है। लेकिन जब कवि उसका मानवीकरण करता है तब वह संजीव हो उठता है। निर्माण एवं अर्थ की दृष्टि से दोनों में विषमता है। काव्यभाषा में वह नर रूप में चित्रित होता है तब मानव और उसमें समानता आ सकती है । कवि की कल्पना मूलक दृष्टि समानता और विषमता दोनों रूपों में
दृष्टिगत होती है। (8) अगले जन्मों में बंगाल में आने की क्या सिर्फ कवि की इच्छा
है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- अगले जन्मों में बंगाल में आने की इच्छा सिर्फ कवि में है बंगाल के प्रति कवि का समर्पण उसके बंगाल मोह की उत्कृष्टता झलकाती है। बंगाल में जन्म लेकर अन्य बंगाली कवियों से प्रेरित होकर उसकी सोच भी मातृभूमि के प्रति दृष्टिगोचर होती है।
(9) लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना कहाँ तक संगत है ?
उत्तर- जब मनुष्य जंगली था तब उसे नाखून की आवश्यकता थी। उसकी जीवन रक्षा के लिए नाखून बहुत जरूरी थे। असल में वही उसके अस्त्र थे। उन दिनों उसे जूझना पड़ता था, प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ना पड़ता था, नाखून उसके लिए आवश्यक अंग था।
(10) देवनागरी लिपि के अक्षरों में स्थिरता कैसे आयी है ? उत्तर करीब दो सदी पहले पहली बार इस लिपि के टाइप बने और इसमें पुस्तकें छपने लगीं, इसलिए इसके अक्षरों में स्थिरता आ गई है।
(11) मंगम्मा का अपनी बहू के साथ किस बात को लेकर विवाद था ? उत्तर संसार का सत्य है कि सास और बहू में स्वतंत्रता की होड़ लगी ही रहती है। माँ बेटे पर से अपना हक नहीं छोड़ना चाहती और बहू पति पर अधिकार जमाना चाहती है। बहू ने किसी बात को लेकर अपने बेटे को खूब पीटा मंगम्मा ने अपने पोते की पिटाई से क्षुब्ध होकर बहू को भला-बुरा कह दिया बेटे पर अधिकार को लेकर मंगम्मा और उसकी बहू में विवाद था।
(12) मंगु को पागलों के अस्पताल में भर्ती कराने की लोगों की सलाह पर उसकी माँ क्या कहती थी ?.
उत्तर जब लोग मंगु की माँ से मंगु को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए कहते तो वह यह कहकर लोगों को जवाब देती कि यदि मैं माँ होकर उसकी सेवा नहीं कर सकती तो अस्पताल वाले भला क्या करेंगे। यह तो अपंग जानवरों को गौशालाओं में भर्ती कराने जैसा ही होगा।
(13) कीजिए । ‘इंकार करना’ न भूलनेवाले कौन हैं ? कवि का भाव स्पष्ट
उत्तर- हठीला जीवन जीने वाले वैसे लोग जो त्रस्त होने पर भी अपने आत्मबल को कमजोर नहीं कर पाये हैं। अभावों के बीच भी अपने तेज को